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नवंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपने अस्तित्व के लिए झुझता संविधान

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        आज के समय में संविधान का महत्त्व नमस्कार, आप सभी को संविधान दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाये आज के दिन हमने खुद को यह संविधान दिया था , आजादी के इतने साल बाद भी सवाल यह है कि हमने और हमारे नेताओं ने संविधान को कितना सम्मान दिया ? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह संविधान हम पर थोपा नहीं गया है , संविधान की उद्देशिका में साफ़ साफ़ लिखा है कि हम भारत के लोग खुद को यह संविधान देते है यानी हमने अपनी मर्जी से इस संविधान को चुना है अपने लिए । भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है इसमें हर बात काँच की तरह साफ़ करने की कोशिश की गयी है जैसे किस पद पर कोन व्यक्ति बैठेगा , उसका चुनाव कोन करेगा , उसके कार्य क्या होंगे और उसकी योग्यता क्या होगी पर इतना सब होने के बाद भी संविधान में कुछ जगह छूट जाती है पद पर बैठे आदमी के विवेक के लिए जैसे मसलन आजादी के बाद से राज्यपाल के पद का कई बार अपने फायदे के लिए दुरूपयोग किया गया... संविधान निर्माण समिति ने संविधान के संसोधन के लिए भी जगह रखी ताकि संविधान वक्त की जरूरतों के हिसाब से खुद को बदलता रहे पर हमा

JNU के जिस दृष्टि बाधित शशि भूषण पांडेय पर दिल्ली पुलिस ने लाठी बरसायी वह है BJP जिला अध्यक्ष का बेटा, जाने क्या कहना है पिता का ??

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यह रहा उनके पिता के फेसबुक प्रोफाइल का स्क्रीन शॉट आप देख सकते है क्या कहना है उनके पिता का इस बारे में , उनकी फेसबुक प्रोफाइल देखने के लिए फेसबुक पर उन्हें सर्च भी कर सकते है या Anand pandey facebook  पर जाकर देख सकते है

JNU के छात्रों पर लगते आरोप किस हद तक सही है ??

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क्या JNU वाले देशद्रोही है ? रुकिए जनाब  जरा ठहरिये  JNU  वाले देश द्रोही है........ JNU में सबके पास iphone है...... JNU में जितने भी लोग पढ़ रहे है वह बूढ़े है..... JNU में हॉस्टल fee सिर्फ 300 रूपये हुई है..... JNU नशेड़ियों का अड्डा हो गया है...... JNU में रोज इतनी हजार बियर बोतल रोज निकलती है.... और भी बहुत कुछ आपको मीडिया और ज्ञान पाने के सबसे भरोसेमंद जरिये व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से मिल रही होगी । पर अब आते है आंकड़ो पर JNU में रहने वाले छात्रों को रहने खाने की फीस (हॉस्टल + सर्विस चार्ज + मेस फीस) अब 60000 रूपये हो गयी है  और गरीबी रेखा से नीचे वाले छात्रों के लिए 47000 हो गयी है  *इसमें कॉलेज की कोई भी फीस नहीं जोड़ी गयी है अब आते है iphone वाले पॉइंट पर आंकड़े बताते है की JNU में 40 प्रतिशत छात्र ऐसे है जिनके परिवार की मासिक आय 12000 है और 27 प्रतिशत छात्र ऐसे है जिनकी हालात अत्यंत ख़राब है और उनकी मासिक आय 6000 है यानि कुल  67 प्रतिशत छात्र ऐसे जो वहाँ पढ़ने के लिए छात्रवर्ती पर निर्भर है अब बाकि के 33 प्रतिशत छात्र हो सकता है iphone ले सकते

मशहूर लेखकों द्वारा लिखी गयी कुछ शानदार SAD HINDI POEM

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SAD HINDI POEM for youths by great poets आज कल के  facebook और  whatsapp के जमाने में लोग अपनी feelings को status और caption के जरिये व्यतीत करते है , इसलिए आज कल के युवा लोग भारत के पुराने Great कवियों की रचनाओं को अपनी भावनाओं को दिखाने का जरिया बनाते है , हमने आपके के लिए कुछ ऐसी कविताएं (SAD POEM) संग्रह की है 1 ओ गगन के जगमगाते दीप! -  हरिवंश राय बच्चन जी दीन जीवन के दुलारे खो गये जो स्वप्न सारे, ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप! यदि न मेरे स्वप्न पाते, क्यों नहीं तुम खोज लाते वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप! यदि न वह भी मिल रही है, है कठिन पाना-सही है, नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप? ओ गगन के जगमगाते दीप 2. मैंने गाकर दुख अपनाए! - हरिवंश राय बच्चन कभी न मेरे मन को भाया, जब दुख मेरे ऊपर आया, मेरा दुख अपने ऊपर ले कोई मुझे बचाए! मैंने गाकर दुख अपनाए! कभी न मे

एम्बुलेंस की मोहताज हो गयी आइंस्टीन को चुनौती देने वाले गणितज्ञ की देह ।

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एम्बुलेंस की मोहताज हो गयी आइंस्टीन को चुनौती देने वाले गणितज्ञ की देह       Pic source : the quint भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ और आइंस्टीन के सिद्धान्तों को चुनौती देकर प्रसिद्ध हुए डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह जी का देहांत पटना के पीएमसीएच हुआ , वह 77 साल के थे और करीब 40 साल से सिजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित थे । उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने भी ट्वीट करके उनके निधन पर शोक जताया है  राष्ट्रपति जी का ट्वीट प्रधानमंत्री जी का ट्वीट अब आप इस चित्र को देखिये  इस चित्र में जिस व्यक्ति की देह स्ट्रेचर पर लेटी है डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह जी की है और बगल में जो सज्जन खड़े है वह इनके परिजन है और उनका कहना है कि अस्पताल की तरफ से उन्हें कोई एम्बुलेंस मुहैया नहीं करायी गयी और वह 2 घंटे खुले में वशिष्ठ जी की देह को लेकर एम्बुलेंस आने का इंतजार करते रहे और अंत में स्वयं की व्यवस्था करके शव को घर ले गए । अब सवाल यह है कि क्या हम अपने द

आखिर क्यों है रविवार हमसे नाराज ?

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  रविवार आपसे कुछ कहना चाहता है ! Sunday wants to say something to you!           नमस्कार दोस्तों, मैं इतवार हूँ , आप लोग मुझे Sunday के नाम से भी जानते होंगे.. सन 1843 तक बाकि के 6 दिनों जैसा आम (फल वाला नहीं, केजरीवाल वाला) सा दिन था परंतु इसके बाद मेरी जिंदगी ही बदल गयी , अंग्रेजो ने कूटनीति से मुझे अवकाश घोषित करके मुझमे और मेरे बाकि के 6 भाइयों में फूट डाल दी , कुछ दिन हमारे झगडे चले पर अब सुलह हो गयी है क्योंकि अब हम इंसान थोड़ी है जो अंग्रेजो के गाड़े खूंटो के लिए  अभी तक लड़ते रहे, फिर क्या था मैं एका एक सबका चहेता बन गया... पहले जब मेरे आने से किसी को फर्क नहीं पड़ता था अब सब मेरा ही इंतजार करने लगे... मेरे आने से सबसे ज्यादा खुश बच्चे होते है, क्योंकि उन्हें न तो सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाना होता है और ऊपर से खेलने के लिए ढेर सारा वक्त मिल जाता है वह अलग ,कामकाजी पुरुष आराम से उठते है और फिर दिनभर ऐसे सुस्ताते रहते है जैसे उन्हें राहुल गाँधी जी जैसा जबरजस्ती संसद में बैठना पड़ रहा हो, पर उन्हें भी चैन से न बैठने देने के लिए

प्रदूषण सब ने फैलाया ,तो जिम्मेदार अकेला किसान क्यों ?

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                 कटघरे में किसान अकेला क्यों ?? मीडिया , सरकार, सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली की आम जनता पड़ोसी राज्यो के किसानों पर पराली जलाने को लेकर कटघरे में खड़ा कर दिया है और दूसरे कारणों का कही से कही तक कोई जिक्र ही नहीं हो रहा है । तो क्या सच में इस प्रदुषण को लेकर किसान इतना जिम्मेदार है ? क्या सच में दिल्ली में फैले प्रदूषण को लेकर वहाँ की आम जनता , सरकार और पावर प्लांट बेकसूर है ? सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 35 प्रतिशत दिल्ली का प्रदूषण किसानों के द्वारा जलायी गयी पराली से होता है , अगर इस आंकड़े को एक पल के लिए सही भी मान ले तो बाकि के 65 प्रतिशत का क्या ? अगर सरकार यह बता सकती है कि किसानों ने कितना प्रदूषण फैलाया तो उसे बाकि के 65 प्रतिशत के गुनाहगारों के बारे में भी पता ही होगा , पराली जलाने वाले किसानों पर तो सरकार जुर्माना लगा रही है पर लाखों AC और करोड़ो वाहनों का सुख भोगने वाली दिल्ली की आम जनता का क्या.... ? आंकड़ो के मुताबिक दिल्ली में करीब 1 करोड़ के अधिक वाहन है और पिछले साल सिर्फ और सिर्फ दिवाली के दिन ही दिल्ली ने 50 लाख किलो

इश्क़ इन भोपाल : A Bhopali love story

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BHOPALI LOVE STORY                                                                                 इश्क़ इन भोपाल                        शाम का वक्त था,  रोड के बगल में दूर तलक दिखती झील और उसमें डूबते सूर्य से पानी में तैरती लालिमा माहौल में एक अजीब सी मिठास घोल रही थी, किनारे लगी राजा भोज की प्रतिमा भी आज जरा सा ज्यादा मुस्कुरा रही थी इसी बीच इसी सड़क एक बाइक पर एंट्री होती है हमारे हीरो की , नाम "राहुल ठाकुर" उम्र यही कोई 20-21 के आस पास, गेहुआ रंग औसत कद काठी , चमड़े का जैकेट डालें किसी Normal college going student  जैसा हुलिया,  राहुल एक हाथ से बाइक का handle सँभालते तो एक हाथ से अपने बालों को संवारते अपनी ही धुन में सरपट चला जा रहा था , वह कभी एक तरफ दिनभर जलते जलाते हुए रवि को पानी की शीतलता में विलीन होते देखता तो कभी दूसरी बगल में दिन भर सीना ताने खड़ी इमारतों को.... तभी इस सड़क पर भोपाल old city से आते हुए रास्ते से एक जीप मुड़ती है राहुल की नजरें इधर उधर भटकते भटकते अचानक जीप पर रुक सी जाती है , वह देखता है कि जीप में एक परिवार सैर को निकला हुआ है

क्यों आपकी और हमारी वजह से डूब रही पंचायते, जानें ?

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ग्राम पंचायतें : भारतीय राजनितिक तंत्र का डूबता जहाज गाँधी जी ने आजादी के वक्त ग्राम पंचायतों को भारत के तंत्र की नींव बनाने की वकालत की थी परंतु तब उनके सुझावों पर अमल नहीं किया गया पर जब आगे जाकर जब पंचायत का महत्त्व समझ आया तो इसे 1992 में संविधान में जोड़ लिया गया... आज का सवाल यही है कि क्या ग्राम पंचायतें अपने उद्देश्य में सफल हो पायी ??? और अगर आप भारत के गाँवों में जरा सा झाँक के देखोगे तो गांव आपको खुद चीखते हुए जवाब "ना" में देंगे .... आज ग्राम पंचायतें गबन करते पैसे हजम करने का अड्डा बन चुकी है..... नई सोच के साथ आगे बढ़ना तो दूर की बात इतने वर्षों में यह गांवों में पानी और सड़क जैसी मुलभुत सुविधाएं भी पूरी तरह से नहीं पहुँचा पायी..... आइये पहले ग्राम पंचायत के बारे में जानते है उसके बाद इस बारे में और बात करेंगे READ MORE :  क्या सच में इस प्रदुषण को लेकर किसान इतना जिम्मेदार है ? राज्य सरकारों के बावजूद ग्राम पंचायतों की जरुरत क्यों जैसा की आप सब जानते है कि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और लोकतांत्रिक देश होने के कारण यहाँ की सारी शक

धुँआ धुँआ दिल्ली

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अपने बचपन में पर्यावरण पर निबंध लिखते वक्त दुष्प्रभाव लिखते वक्त यह भी सोचा ही होगा की यह सब तोह कहने की बाते है इसका इत्ता प्रभाव थोड़ी न होने वाला है ..... पर अब धीरे धीरे वह दुष्प्रभाव ज़मी पर दिखने लगे है और खासकर देश की राजधानी दिल्ली में जहाँ हवा की गुणवत्ता दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है और दिल्ली में कई जगह AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) लेवल खतरे के स्तर से ऊपर जा चूका है , यह कई इलाको में 400 के आस पास तोह चाँदनी चौक में 600 के स्तर तक पहुँच चूका है | सुप्रीम कोर्ट की EPCA कमिटी के चेयरमैन भूरे लाल ने कहा है कि " दिल्ली और एनसीआर में हवा की गुणवत्ता कल रात और बिगड़ गई और अब गंभीर स्तर पर है। हमें इसे एक सार्वजनिक स्वास्थ आपातकाल के रूप में लेना होगा क्योंकि इससे सभी पर, विशेषकर हमारे बच्चों पर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा" हवा की बिगड़ती गुणवत्ता को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट करते हुए कहा है कि राज्य सरकार द्वारा ने मोर्चा संभाल हुए पहले दिवाली के दौरान फटाको पर रोक लगा कर , फिर बच्चो को मास्क बाँट कर स्थिति पर नियंत