प्रस्तावना आज कल शहरो में फेमिनिज्म की आवाज बड़ी तेजी स्वर पकड़ रही है, सोशल मीडिया साइट्स पर मुहिमे चलायी जा रही है , महिलाएं खासकर युवा यानि हमारी हमउम्र ,महिलाओ के मुद्दों पर खुल कर सामने आ रही है फिर चाहे वह मुद्दा बीते दशक से उठ रहा समान वेतमान का हो या फिर मासिक धर्म और सेनेटरी पैड्स के उपयोग जैसे मुद्दा | जिसका उल्लेख भी आज से कुछ वर्ष पहले तक किया जाना अपवित्र माना जाता था । गाँव की नारी,सब पर भारी यह तो हो गयी शहरों की बात अब बात करते है भारतीय समाज के उस तबके की जिसकी व्याख्या अंग्रेजी के शब्द "underated" से की जा सकती है वह है "ग्रामीण महिला" जिसका उल्लेख न तो रोज रोज अखबारों में होता है, न ही यह तबका टीवी पर खिड़कियों में बैठा बहस करता दिखेगा पर है तो यह भारतीय समाज का सबसे अहम तबका जो इस आधुनिकता के दौर में जहाँ पश्चिम की तरफ से चल रही हवा हमारे रहन सहन में मिलावट कर रही है उसी दौर में ग्रामीण महिलाएं आज भी नैतिकता और सरलता का झंडा उठाए झूझ रही है और जिस बराबरी के हक़ की आवाज को आज लोग फेमिनिज्म की उपमा दे रहे है यह महिलाएं सदियों...
अपने बचपन में पर्यावरण पर निबंध लिखते वक्त दुष्प्रभाव लिखते वक्त यह भी सोचा ही होगा की यह सब तोह कहने की बाते है इसका इत्ता प्रभाव थोड़ी न होने वाला है ..... पर अब धीरे धीरे वह दुष्प्रभाव ज़मी पर दिखने लगे है और खासकर देश की राजधानी दिल्ली में जहाँ हवा की गुणवत्ता दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है और दिल्ली में कई जगह AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) लेवल खतरे के स्तर से ऊपर जा चूका है , यह कई इलाको में 400 के आस पास तोह चाँदनी चौक में 600 के स्तर तक पहुँच चूका है | सुप्रीम कोर्ट की EPCA कमिटी के चेयरमैन भूरे लाल ने कहा है कि " दिल्ली और एनसीआर में हवा की गुणवत्ता कल रात और बिगड़ गई और अब गंभीर स्तर पर है। हमें इसे एक सार्वजनिक स्वास्थ आपातकाल के रूप में लेना होगा क्योंकि इससे सभी पर, विशेषकर हमारे बच्चों पर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा" हवा की बिगड़ती गुणवत्ता को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट करते हुए कहा है कि राज्य सरकार द्वारा ने मोर्चा संभाल हुए पहले दिवाली के दौरान फटाको पर रोक लगा कर , फिर बच्चो को मास्क बाँट कर स्थिति पर नियंत...
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