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आखिर क्यों है रविवार हमसे नाराज ?

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  रविवार आपसे कुछ कहना चाहता है ! Sunday wants to say something to you!           नमस्कार दोस्तों, मैं इतवार हूँ , आप लोग मुझे Sunday के नाम से भी जानते होंगे.. सन 1843 तक बाकि के 6 दिनों जैसा आम (फल वाला नहीं, केजरीवाल वाला) सा दिन था परंतु इसके बाद मेरी जिंदगी ही बदल गयी , अंग्रेजो ने कूटनीति से मुझे अवकाश घोषित करके मुझमे और मेरे बाकि के 6 भाइयों में फूट डाल दी , कुछ दिन हमारे झगडे चले पर अब सुलह हो गयी है क्योंकि अब हम इंसान थोड़ी है जो अंग्रेजो के गाड़े खूंटो के लिए  अभी तक लड़ते रहे, फिर क्या था मैं एका एक सबका चहेता बन गया... पहले जब मेरे आने से किसी को फर्क नहीं पड़ता था अब सब मेरा ही इंतजार करने लगे... मेरे आने से सबसे ज्यादा खुश बच्चे होते है, क्योंकि उन्हें न तो सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाना होता है और ऊपर से खेलने के लिए ढेर सारा वक्त मिल जाता है वह अलग ,कामकाजी पुरुष आराम से उठते है और फिर दिनभर ऐसे सुस्ताते रहते है जैसे उन्हें राहुल गाँधी जी जैसा जबरजस्ती संसद में बैठना पड़ रहा हो, प...

हिंदी कहानी : एक पुराना ख्वाब

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एक पुराना ख्वाब ‌यह शर्मा परिवार के यहां की एक सामान्य सी सुबह थी, बस इस बार छुट्टियों में घर आए आदित्य के कारण थोड़ी सी चहल-पहल बढ़ गई थी | आदित्य अपनी मां के साथ मिलकर घर में पड़े पुराने सामान की छटाई मैं मदद कर रहा था ताकि काम का  सामान रखकर बाकी का सामान कबाड़ वाले को तोला जा सके, तभी उसकी नजर एक पुरानी नटराज के geometry box पर पड़ी उसने धीरे से मां की नजरों से बचाते हुए उस geometry box को अपने जेब में डाल लिया काम से फुर्सत पाकर आदित्य ने जैसे ही उस बॉक्स को खोला उसने पाया कि उस डिब्बे के अंदर एक पॉलिथीन के अंदर लपेटा हुआ सोने का तमगा रखा हुआ था, जिस पर अंग्रेजी में अंकित था 'नेशनल जूनियर बॉक्सिंग चैंपियन' , उस मैडल की कहीं-कहीं से पॉलिश चुकी थी | उस मैडल को देखते ही आदित्य के सामने उसके बचपन के कई दृश्य जीवंत हो गए हो गए कि कैसे उसने एक सपना देखा था नेशनल चैंपियनशिप में अपने राज्य के लिए एक मेडल जीत के लाने का, कैसे उसने लगातार तीन साल तक कड़े अभ्यास के बाद नेशनल चैंपियनशिप में जगह बनाई थी और स्वर्ण पदक जीता था | वापस अपने शहर आने पर शहर के एकमात्र राष्ट्रीय स...

कहानी : कागज की नाव और बचपन

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                     "कागज की नाव और बचपन" छोटा था तब मैं कागज की नाव में अपना बचपन बिठा कर बारिश के बहते पानी में छोड़ देता था, समझ थी नहीं... तो नाव मजबूत बनती नहीं थी , कुछ दूर जाकर डूब जाती थी...बचपन पानी में लुढक जाता था मैं भी मजे से उसी पानी में मस्ती करते हुए अपना बचपन वापस उठा लाता था और फिर इंतजार करता था अगली बारिश का... हर बार यही होता.... पर धीरे धीरे मैं बड़ा हो गया मुझे नाव बनाना अच्छे से आ गयी.. एक दिन फिर बारिश आयी मैंने नाव बनायी और फिर से बचपन बिठा के छोड़ दिया पानी में पर यह क्या अबकी बार नाव डूबी ही नहीं वह तो सरपट आगे निकल गयी थी ... पानी के तेज़ बहाव के साथ ... अब वह नाव तो निकल गयी.. बचपन भी निकल गया... पीछे रह गया मैं अकेला... अभी भी वही हूँ,  सोच रहा हूँ की .......क्या गलती कर दी थी बड़ा होकर.... पर जो भी है अब है .... वैसे आपको पहली बारिश मुबारक🙂 -शुभम जाट