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जानिए कैसे 60 की उम्र में दादी बनी शूटर दादी ?😎

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                   शूटर दादी,रिवाल्वर रानी "छोरियां अब बंदूक चलावे हैं। बुड्ढी का दिमाग खराब हवे है। कारगिल में लड़न के लिए भेज दें। बड्डी निशानची बने है।" गाँव के मर्दो से यह सुनने से लेकर आज उन्ही के परिवार की लड़कियों को शूटिंग में करियर बनाने में प्रेरित करने तक की कहानी जो शूटर दादी के नाम से मशहूर प्रकाशी तोमर और चन्द्रो तोमर ने लिखी है वह वह हर वर्ग की महिला के लिए प्रेरणा सोत्र है।  प्रकाशी तोमर की जिंदगी आम ग्रामीण महिला सी ही चल रही थी सुबह ऊठ कर घर गृहस्ती का काम करना फिर बेटी को लेकर शूटिंग प्रैक्टिस के लिए उसे रेंज ले जाना वापस लाना और वापस अपनी घर गृहस्ती में व्यस्त हो जाना.... पर प्रकाशी तोमर जी की जिंदगी में रातों रात तब बदल गयी जब शूटिंग रेंज में बोरियत के ऊब कर उन्होंने पिस्टल पर हाथ आजमाने की सोची और उनका निशाना पहले ही प्रयास में बिलकुल ठिकाने पर जाकर लगा और कोच की नजर उन पर पड़ी । उन्होंने जब अपने इस शौक के बारे में अपनी जेठानी चंद्रो तोमर को बताया तो उन्होंने भी प्रकाशी जी के साथ इसका अभ्यास शुरू कर दिया पर उन दो

ग्रामीण भारतीय नारी : भारत का सबसे अंडर रेटेड तबका, Rural Indian woman: India's most under-rated class

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प्रस्तावना आज कल शहरो में फेमिनिज्म की आवाज बड़ी तेजी स्वर पकड़ रही है, सोशल मीडिया साइट्स पर मुहिमे चलायी जा रही है , महिलाएं खासकर युवा यानि हमारी हमउम्र ,महिलाओ के मुद्दों पर खुल कर सामने आ रही है फिर चाहे वह मुद्दा बीते दशक से उठ रहा समान वेतमान का हो या फिर मासिक धर्म और सेनेटरी पैड्स के उपयोग जैसे मुद्दा | जिसका उल्लेख भी आज से कुछ वर्ष पहले तक किया जाना अपवित्र माना जाता था  । गाँव की नारी,सब पर भारी यह तो हो गयी शहरों की बात अब बात करते है भारतीय समाज के उस तबके की जिसकी व्याख्या अंग्रेजी के शब्द "underated" से की जा सकती है वह है "ग्रामीण महिला" जिसका उल्लेख न तो रोज रोज अखबारों में होता है, न ही यह तबका टीवी पर खिड़कियों में बैठा बहस करता दिखेगा पर है तो यह भारतीय समाज का सबसे अहम तबका जो इस आधुनिकता के दौर में जहाँ पश्चिम की तरफ से चल रही हवा हमारे रहन सहन में मिलावट कर रही है उसी दौर में ग्रामीण महिलाएं आज भी नैतिकता और सरलता का झंडा उठाए झूझ रही है और जिस बराबरी के हक़ की आवाज को आज लोग फेमिनिज्म की उपमा दे रहे है यह महिलाएं सदियों

खेती किसानी में उपयोगी मोबाइल ऍप्स

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खेती किसानी में उपयोगी एंड्राइड ऍप आज के इस मोबाइल युग में इंटरनेट सिर्फ अमीर लोगो और बड़े शहरों तक ही सिमित नहीं रहा ,इसकी हवा ने छोटे शहरों से होते हुए गाँवों को भी अपने आगोश में ले लिया है और अपनी पहुँच किसानों तक भी बना ली है, ज्यादातर लोग इसका उपयोग सिनेमा देखने में या सोशल मीडिया साइट्स पर जाने के लिए कर रहे है जिसकी अति हानिकारक है, दोस्तों , आज फ़ोन के लिए ऐसे एंड्राइड ऍप उपलब्ध है जो किसानों के खेती किसानी के दैनिक कार्यो में मदद करने के लिए बने है तो खेती में मदद करने के लिए बने टॉप 5 ऍप इस प्रकार है 1.किसान नेटवर्क ऍप Download किसान नेटवर्क ऍप की विशेषताएं है: 1.विशेष तकनीकों से विभिन्न लेख 2.फसल बीमारी का निशुल्क परामर्श  3.सरकारी योजनाओं की जानकारी  4.निकटतम मंडियों के भाव  5.मौसम का अनुमान  6.कृषि विशेषग्यो से परामर्श 2.इफको किसान ऍप             Download इफको किसान ऍप की विशेषताएं निम्नलिखित है: 1. मंडी भाव 2.मौसम की जानकारी 3.फसलों को खरीदने और बेचने की व्यवस्था 4.कृषि लाइब्रेरी 5. किसान प्रोफाइल अपनी व्यक्तिगत औ

हिंदी कहानी : एक पुराना ख्वाब

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एक पुराना ख्वाब ‌यह शर्मा परिवार के यहां की एक सामान्य सी सुबह थी, बस इस बार छुट्टियों में घर आए आदित्य के कारण थोड़ी सी चहल-पहल बढ़ गई थी | आदित्य अपनी मां के साथ मिलकर घर में पड़े पुराने सामान की छटाई मैं मदद कर रहा था ताकि काम का  सामान रखकर बाकी का सामान कबाड़ वाले को तोला जा सके, तभी उसकी नजर एक पुरानी नटराज के geometry box पर पड़ी उसने धीरे से मां की नजरों से बचाते हुए उस geometry box को अपने जेब में डाल लिया काम से फुर्सत पाकर आदित्य ने जैसे ही उस बॉक्स को खोला उसने पाया कि उस डिब्बे के अंदर एक पॉलिथीन के अंदर लपेटा हुआ सोने का तमगा रखा हुआ था, जिस पर अंग्रेजी में अंकित था 'नेशनल जूनियर बॉक्सिंग चैंपियन' , उस मैडल की कहीं-कहीं से पॉलिश चुकी थी | उस मैडल को देखते ही आदित्य के सामने उसके बचपन के कई दृश्य जीवंत हो गए हो गए कि कैसे उसने एक सपना देखा था नेशनल चैंपियनशिप में अपने राज्य के लिए एक मेडल जीत के लाने का, कैसे उसने लगातार तीन साल तक कड़े अभ्यास के बाद नेशनल चैंपियनशिप में जगह बनाई थी और स्वर्ण पदक जीता था | वापस अपने शहर आने पर शहर के एकमात्र राष्ट्रीय स

कहानी : कागज की नाव और बचपन

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                     "कागज की नाव और बचपन" छोटा था तब मैं कागज की नाव में अपना बचपन बिठा कर बारिश के बहते पानी में छोड़ देता था, समझ थी नहीं... तो नाव मजबूत बनती नहीं थी , कुछ दूर जाकर डूब जाती थी...बचपन पानी में लुढक जाता था मैं भी मजे से उसी पानी में मस्ती करते हुए अपना बचपन वापस उठा लाता था और फिर इंतजार करता था अगली बारिश का... हर बार यही होता.... पर धीरे धीरे मैं बड़ा हो गया मुझे नाव बनाना अच्छे से आ गयी.. एक दिन फिर बारिश आयी मैंने नाव बनायी और फिर से बचपन बिठा के छोड़ दिया पानी में पर यह क्या अबकी बार नाव डूबी ही नहीं वह तो सरपट आगे निकल गयी थी ... पानी के तेज़ बहाव के साथ ... अब वह नाव तो निकल गयी.. बचपन भी निकल गया... पीछे रह गया मैं अकेला... अभी भी वही हूँ,  सोच रहा हूँ की .......क्या गलती कर दी थी बड़ा होकर.... पर जो भी है अब है .... वैसे आपको पहली बारिश मुबारक🙂 -शुभम जाट