अपने अस्तित्व के लिए झुझता संविधान

        आज के समय में संविधान का महत्त्व

नमस्कार,
आप सभी को संविधान दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाये आज के दिन हमने खुद को यह संविधान दिया था ,
आजादी के इतने साल बाद भी सवाल यह है कि हमने और हमारे नेताओं ने संविधान को कितना सम्मान दिया ?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यह संविधान हम पर थोपा नहीं गया है , संविधान की उद्देशिका में साफ़ साफ़ लिखा है कि हम भारत के लोग खुद को यह संविधान देते है यानी हमने अपनी मर्जी से इस संविधान को चुना है अपने लिए ।
भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है इसमें हर बात काँच की तरह साफ़ करने की कोशिश की गयी है जैसे किस पद पर कोन व्यक्ति बैठेगा , उसका चुनाव कोन करेगा , उसके कार्य क्या होंगे और उसकी योग्यता क्या होगी पर इतना सब होने के बाद भी संविधान में कुछ जगह छूट जाती है पद पर बैठे आदमी के विवेक के लिए जैसे मसलन आजादी के बाद से राज्यपाल के पद का कई बार अपने फायदे के लिए दुरूपयोग किया गया...
संविधान निर्माण समिति ने संविधान के संसोधन के लिए भी जगह रखी ताकि संविधान वक्त की जरूरतों के हिसाब से खुद को बदलता रहे पर हमारे नेताओं ने क्या किया ......
उन्होंने संविधान को अपनी मर्जी के हिसाब से बदला उदाहरण के लिए इंद्रा गाँधी 1972 में इमरजेंसी के दौरान संविधान के कई हिस्सों को पूरी तरह बदल दिया था ।
यह तो हो गयी नेताओ की बात अब आते है प्रजा पर , जनता पर जो लोकतंत्र का सबसे मत्वपूर्ण अंग है पर बरसो से हो रहे इस संविधान के अपमान में सबसे बड़े दोषी हम ही है ,
जानिये कैसे :
हाल ही बात ले लीजिए जब कई राज्यो में और किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला और सरकार बनाने के जुगाड़ होने लगे तो नेताओ ने अपने गंदे खेल खेलना चालू किये जो हर बार होता है पर अबकी बार कुछ नया हुआ इस बार लोग सोशल मीडिया पर आकर उस खेल की तारीफ़ करने लगे ..
जोक्स चले की 
"की चुनाव कोई भी जीते सरकार मोटा भाई ही बनाएंगे "
"मोटा भाई कही भी सरकार बना सकते है"
"मोटा भाई विधायक ऐसे खरीदते है जैसे घोड़े खरीद रहे हो"
खरीद फरोख्त के इस गंदे खेल को गौरवान्तित किया गया 
उस शख्स को चाणक्य की भूमिका दी गयी
पर सवाल यह है कि क्या हमें जरा सी शर्म नहीं आती यह सब कहते हुए ?
पहले नेता लोग बेशर्म हुआ करते थे पर अब जनता भी हो गयी है ?
कोई हमारे संविधान की आत्मा का कत्ल कर रहा है और हम उसे चाणक्य की उपाधि दे रहे है.....
जब कारण जानने की कोशिश करेंगे तो बहुत गन्दा सच सामने आता है वह सच जो हमारे लोकतंत्र का धीरे धीरे क़त्ल कर रहा है , दीमक की तरह अंदर से चाट रहा है ,
वह सच है "भक्त होना" भारत में अधिकतर लोग किसी न किसी पार्टी नेता के भक्त ही है "आम जनता" तो बहुत कम है यहाँ और जैसे जैसे आप गाँवों की तरफ बढ़ेंगे "आम जनता" कम और "भक्त" बढ़ते जायेंगे..
किसी पार्टी का विचारधारा का समर्थक होना अच्छी बात है फिर इतना खतरा क्यों ....?
क्योंकि भारत में समर्थक कम और भक्त ज्यादा है और भक्त क्या अंधभक्त है इतने बड़े अंधभक्त की उन्हें दिखाई ही नहीं देता की उनकी पार्टी क्या गलत कर रही है और क्या सही,
इसी अंधभक्ति में उन्हें विधायक खरीदना भी मास्टरस्ट्रोक लगता है और यह नीच काम करने वाला चाणक्य.....

अब आप सोचिये भारतीयता अगर धर्म है और संविधान हमारा धार्मिक ग्रंथ तो उसकी आत्मा का कत्ल करने वाला देशभक्त कैसे हो सकता है पर छोड़िये हमें और देश के मीडिया को लगता है कि सस्ती शिक्षा मांगते विद्यार्थियों से देश को खतरा है संविधान की धज्जियां उड़ाते इन नेताओं से नहीं..

अब बस बात इतनी सी है कि आज के इस दौर में गीता , कुरान बाइबल का पूरी तरह पालन करना हमारे बस का नहीं रहा और जो कर ले वह संत हो जाता है पर हम कम से कम संविधान का कर सकते है तो कीजिये , एक बार संविधान न सही उसकी उद्देशिका जरूर पढ़िए और जो नेता उसपर खरा न उतरे उसे नजरो से उतार दीजिये,
रामराज्य खुद ब खुद आ जायेगा🙏
जय हिंद🇮🇳
आपका 
शुभम जाट🙏
सिया राम🙏





टिप्पणियाँ

  1. शुभम बहुत सही बातों का जिक्र किया है इस लेख में । मेरी एक सलाह ओर है आज की राजनीति बहुत गन्दी हो गयी है इस बात को में मानता हूं
    1947 में जिस तरह से आजादी मिलने की खुशी मनाई जा रही थी उसी समय इस गन्दी राजनीति की शुरुवात हो गयी थी । उसके बाद ताशकन्ध के बाद शास्त्री जी की मौत हुई वो राजनीति की चरम सीमा थी किंतु उस समय मीडिया इतना पावर फूल नही था तो उस समय किसीने ध्यान ही नही दिया उसके बाद इस सँविधान के साथ खिलवाड़ शुरू हुआ सत्ता के लिए इमरजेंसी जैसी विडम्बना देश को सहना पड़ी । और इस सविधान की धज्जियां उड़ाई गयी उसके बाद जब अटल जी ने देश मे सरकार बनाई तो सिर्फ पद के लिए राजनेता ने उनकी सरकार को 13 दिन में चली और विपक्षियों ने जोड़ तोड़ की राजनीति ने जोर पकड़ा 13 महीने तक चुनाव से बचने की फिर कोशिश हुई लेकिन उस समय लोगो ने सरकार का साथ दिया और फिर मिली जुली सरकार बनी तो विपक्ष ने फिर जोड़ तोड़ की लेकिन सफल नही हुवे । यहां राष्ट्रपति के चुनने में भी राजनीति होती है 1947 से जो चाणक्य बने हुवे थे उन्होंने राजनीति में ऐसे ऐसे उलटफेर किये और सविधान को तक मे रख कर निर्णय लिए गए थे । और आज भी वही हो रहा है आज अंतर सिर्फ ये है कि मीडिया का ओर सोशल मीडिया का अपना एक बड़ा योगदान है जो लोगो तक हर बात पहुचा कर हर बात को साफ करता है जो पहले नही होता था ।

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  2. , बहुत अच्छा विचार है।
    लेकिन इस संविधान में संशोधन की अभी बहुत जरूरत है ।जैसे नेताओं के लिए क्वालिफिकेशन,ओर नेताओ को एक साथ दो जगह से चुनाव लड़ने ,की ऐसी बहुत सारी बाते है,ओर आज सामान्य वर्ग के साथ जो हर एग्जाम में ओर हर विभाग में दुर्व्यवहार हो रहा है ,इसके अलावा हर गाव का वो गरीब परिवार का लड़का चाहे वह sc या st या किसी भी वर्ग का हो आज तक उस परिवार में उसे उस आरक्षण का फायदा नहीं मिल रहा है
    ओर हर कोई जानता है कि इस का फायदा कोन ले रहा है...............


    संविधान संशोधन की बहुत आवश्यकता है

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