हिंदी कहानी : एक पुराना ख्वाब

एक पुराना ख्वाब


‌यह शर्मा परिवार के यहां की एक सामान्य सी सुबह थी, बस इस बार छुट्टियों में घर आए आदित्य के कारण थोड़ी सी चहल-पहल बढ़ गई थी | आदित्य अपनी मां के साथ मिलकर घर में पड़े पुराने सामान की छटाई मैं मदद कर रहा था ताकि काम का  सामान रखकर बाकी का सामान कबाड़ वाले को तोला जा सके, तभी उसकी नजर एक पुरानी नटराज के geometry box पर पड़ी उसने धीरे से मां की नजरों से बचाते हुए उस geometry box को अपने जेब में डाल लिया काम से फुर्सत पाकर आदित्य ने जैसे ही उस बॉक्स को खोला उसने पाया कि उस डिब्बे के अंदर एक पॉलिथीन के अंदर लपेटा हुआ सोने का तमगा रखा हुआ था, जिस पर अंग्रेजी में अंकित था 'नेशनल जूनियर बॉक्सिंग चैंपियन' , उस मैडल की कहीं-कहीं से पॉलिश चुकी थी | उस मैडल को देखते ही आदित्य के सामने उसके बचपन के कई दृश्य जीवंत हो गए हो गए कि कैसे उसने एक सपना देखा था नेशनल चैंपियनशिप में अपने राज्य के लिए एक मेडल जीत के लाने का, कैसे उसने लगातार तीन साल तक कड़े अभ्यास के बाद नेशनल चैंपियनशिप में जगह बनाई थी और स्वर्ण पदक जीता था | वापस अपने शहर आने पर शहर के एकमात्र राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी होने पर उसका जोरदार स्वागत किया गया था और वह रातों रात रात अपने शहर का हीरो बन चुका था और कैसे सारे राज्य के बॉक्सिंग रिंग्स में जूनियर लेवल पर एक नए सितारे के उदय की चर्चा गर्म थी की फिर कुछ दिनो के बाद उसके 10 वी की बोर्ड परीक्षा आ गयी उसने वहा भी खूब मेहनत की और जिले में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था | अब उसे आगे की पढ़ाई के लिए हैदराबाद भेज दिया गया जहाँ वह अपनी बॉक्सिंग के अभ्यास के साथ साथ अभितांत्रिकी की प्रवेश परीक्षा (iit jee) की तैयारी करने लगा था | कुछ दिन तो सब सही चला पर फिर iit कोचिंग के दबाव के कारण उसकी बॉक्सिंग के अभ्यास में खलल पड़ने लगा और कैसे उसे पिताजी के दबाव में आकर रिंग को छोड़ना पड़ा था | आज वह iit से पढ़कर एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी कर रहा था पैसों की उसे कोई कमी ना थी पर फिर भी एक बात उसके दिल में हमेशा शूल की तरह चुभती रहती थी की अगर वह सबसे लड़कर अगर बॉक्सिंग को चुन लेता तो उसे अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता वह इन सब ख्यालो में खोया ही था कि बाहर वाले कमरे से आयी टीवी की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया खबर थी " भारत के मुक्केबाजों ने किया एक बार फिर निराश एक बार फिर लौटे एशियाई खेलों से खाली हाथ" और इस पर पिताजी ने हर बार की तरह अपने चिर परिचित अंदाज में टिप्पणी भी कर दी "देश की सरकार को खेलो के लेके अपनी नीति बनानी चाहिए ऐसे तो भारत कभी ओलिंपिक में मैडल नहीं जीत पाएंगा " | यह सब सुनकर आदित्य के चेहरे पर एक व्यंग भरी मुस्कान आ गई वह यूं ही मुस्कुराते मुस्कुराते उसने अपने उस पुराने ख्वाब को अच्छे से लपेट, सँभालकर उसी डिब्बे में रख दिया पर अब उसके मन में एक चीज़ साफ हो चुकी थी कि वह कभी अपने बेटे या बेटी को उनके सपने पूरे करने से नहीं रोकेगा ।
‌✍🏻शुभम जाट

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आखिर क्यों है रविवार हमसे नाराज ?

कहानी : कागज की नाव और बचपन