कहानी : अपने अपने सपने

                        अपने अपने सपने

एक बड़ा शहर हैं , छोटी छोटी कई गलियों से बना बड़ा शहर ..
इसी शहर की आपस में उलझी गलियां बाहर जाते जाते ऐसे सुलझती हैं कि एक बड़ी चार लेन की सड़क बन जाती हैं  इसी सड़क पर आगे बढ़ने पर सड़क के किनारे एक छोटा सा घर आता हैं , घर प्रकाश का....

रात को सड़क पर आती जाती गाड़ियों की हलकी पीली रोशनी प्रकाश के घर पर पड़ती हैं तो सड़क से गुजरने वालों के लिए चंद पलों के लिए वह अस्तित्व में आता हैं और फिर वापस डूब जाता हैं अपने पुराने अंधियारे में...

वैसे घर क्या कहे , उबड़ खाबड़ सी बनी दीवारे उस पर जबरदस्ती टांगे से गए टीन के चद्दर, बाहर आँगन में टँगा एक बंद बल्ब और दो सपने...

एक प्रकाश का
एक प्रकाश के बेटे राहुल का

प्रकाश का सपना की पिछली बारिश में जो टीन की छत डाली थी उसके लिए जो पैसे उधार लिए थे वह चुकता कर दे ताकि सेठ जी बार बार लड़के को भेज कर उन्हें जलील न करे

राहुल का सपना थोड़ा बड़ा था की उसने पाठ्यपुस्तक में जिन अब्दुल कलाम की कहानी पढ़ी थी उनके जैसा साइंटिस्ट बनने का सपना

अरे हाँ सॉरी  एक तीसरा सपना भी था
प्रकाश की बीवी का
यही की इन दोनों के सपने पूरे हो जाए,
और कभी न कभी उनके पास इतना पैसा आ जाये की वह खुद के लिए एक जोड़ी कँगन ला सके.......

"पुरे न हो फिर भी देखा करता हूं सपने,
कम से कम दिल ही बहल जाता हैं"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एम्बुलेंस की मोहताज हो गयी आइंस्टीन को चुनौती देने वाले गणितज्ञ की देह ।

क्या पवन की आंधी में टिक पाएंगे विपक्षी उम्मीदवार ?

आखिर क्यों है रविवार हमसे नाराज ?